भैंश पालन लाभकारी कैसे हो ? यह बहुत बड़ा प्रश्न है और समाधान बिलकुल आसान है , अगर आप इस लेख को ध्यान से पढ़ें और बताये गए निर्देशों को अमल करेंगें तो भैंस पालन लाभकारी ही नहीं सबसे लाभकारी ब्यवसाय हो सकता है। हमारा देश दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। भैंसों की संख्या गाय की अपेक्षा लगभग आधी होते हुए भी कुल दूध उत्पादन (71.6 मिलियन टन) का लगभग 53 प्रतिशत इन्ही से प्राप्त होता है। भैंसों का उपयोग दुग्ध उत्पादन के अतिरिक्त मांस उत्पादन एवं भार ढ़ोने के लिए भी किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भैंस के मांस की मांग में वृद्धि होने के कारण इसके कटड़ों का उपयोग मांस उत्पादन के लिए होने लगा है। शांत स्वभाव होने के कारण भैंस के झोटों का उपयोग ढ़ोने व खेत जोतने के लिए किया जाता है।
हमारे देश की आबादी के अनुपात में कृषि योग्य भूमि घटती जा रही है और ऐसी परिस्थितियों में पशुपालन को एक व्यवसाय के रूप में अपना कर किसान कृषि उत्पादन पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं। बैंकों व अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने व पशु बीमा योजनाओं के शुरू होने से शिक्षित युवा वर्ग एवं खेतिहर मजदूर पशुपालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने लगे हैं। इससे किसानों की आमदनी बढ़ने के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्यों तथा खेतिहर मजदूरों को पूरे वर्ष रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।
भैंस हमारा अपना पशु है और दूधारू पशुओं में इसके आर्थिक महत्व को देखते हुए यह अति आवश्यक है कि पशु पालकों को इसके बारे में अधिक से अधिक ज्ञान कराया जाये। इसी बात को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान नेबुफ्फलोपेडिआ(किसानों के लिए) की रचना की ताकि भैंस पालन से संबंधित सभी पहलुओं को आम बोलचाल की सरल भाषा में प्रस्तुत किया जा सके। भैंसों से अधिक उत्पादन के लिए, संतुलित एवं पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए भैंस पोषण एवं कमी के समय चारा प्रबन्धन तथा चारा संरक्षण विषयों के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है। भैंस पालन कैसे लाभकारी हो उसके लिए भैंस पालक को भैंसों के प्रबन्ध व देखभाल का ज्ञान होना जरूरी है। इसलिए भैंस प्रबन्धन, जनन तथा अन्य समस्याओं, भैंसों में होने वाले विभिन्न रोग व उनका निदान आदि का विवेचन किया गया है।
भैंश पालन लाभकारी हो, इसके लिए उचित पोषण :
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भैंस की मुख्य भूमिका है। इसका प्रयोग दुग्ध व मांस उत्पादन एंव खेती के कार्यों में होता है। आमतौर पर भैंस विष्व के ऐसे क्षेत्रों में पायी जाती है जहां खेती से प्राप्त चारे एवं चरागाह सीमित मात्रा में हैं। इसी कारण भैंसों की खिलार्इ-पिलार्इ में निश्कृश्ट चारों के साथ कुछ हरे चारे, कृषि उपोत्पाद, भूसा, खल आदि का प्रयोग होता है। गाय की अपेक्षा भैंस ऐसे भोजन का उपयोग करने में अधिक सक्ष्म है जिनमें रेषे की मात्रा अधिक होती है। इसके अतिरिक्त भैंस गायों की अपेक्षा वसा, कैल्षियम, फास्फोरस एवं अप्रोटीन नाइट्रोजन को भी उपयोग करने में अधिक सक्षम है। जब भैंस को निश्कृश्ट चारों पर रखा जाता है। तो वह इतना भोजन ग्रहण नहीं कर पाती जिससे उसके अनुरक्षण बढ़वार, जनन, उत्पाद एवं कार्यों की आवष्यकताओं की पूर्ति हो सके। इसी कारण से भैंसों में आषातीत बढ़वार नहीं हो पाती और उनके पहली बार ब्याने की उम्र 3.5 से 4 वर्ष तक आती है। अगर भैंसों की भली प्रकार देखभाल व खिलार्इ-पिलार्इ की जाये और आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध करवाये जायें तो इनकी पहली बार ब्याने की उम्र को तीन साल से कम किया जा सकता है और उत्पादन में भी बढ़ोतरी हो सकती है।
भैंश पोषण का उद्देश्य :
- शरीर को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए पोषण की आवश्यकता होती है, जो उसे आहार से प्राप्त होता है। पशु आहार में पाये जाने वाले विभिन्न पदार्थ शरीर की विभिन्न क्रियाओं में इस प्रकार उपयोग में आते हैं।
- पशु आहार शरीर के तापमान को बनाये रखने के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
- यह शरीर की विभिन्न उपापचयी क्रियाओं, श्वासोच्छवास, रक्त प्रवाह और समस्त शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं हेतु ऊर्जा प्रदान करता है।
- यह शारीरिक विकास, गर्भस्थ शिशु की वृद्धि तथा दूध उत्पादन आदि के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है।
- यह कोशिकाओं और उतकों की टूट-फूट, जो जीवन पर्यन्त होती रहती है, की मरम्मत के लिए आवश्यक सामग्री प्रदान करता है।
भैंस के पशु आहार के तत्व :
रासायनिक संरचना के अनुसार कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन तथा खनिज लवण भोजन के प्रमुख तत्व हैं। डेयरी पशु शाकाहारी होते हैं अत: ये सभी तत्व उन्हें पेड़ पौधों से, हरे चारे या सूखे चारे अथवा दाने से प्राप्त होते हैं।
भैंस के लिए कार्बोहाइड्रेट – कार्बोहाइड्रेट मुख्यत: शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसकी मात्रा पशुओं के चारे में सबसे अधिक होती है । यह हरा चारा, भूसा, कड़वी तथा सभी अनाजों से प्राप्त होते हैं।
भैंस के लिए प्रोटीन – प्रोटीन शरीर की संरचना का एक प्रमुख तत्व है। यह प्रत्येक कोशिका की दीवारों तथा आंतरिक संरचना का प्रमुख अवयव है। शरीर की वृद्धि, गर्भस्थ शिशु की वृद्धि तथा दूध उत्पादन के लिए प्रोटीन आवश्यक होती है। कोशिकाओं की टूट-फूट की मरम्मत के लिए भी प्रोटीन बहुत जरूरी होती है। पशु को प्रोटीन मुख्य रूप से खल, दालों तथा फलीदार चारे जैसे बरसीम, रिजका, लोबिया, ग्वार आदि से प्राप्त होती है।अमीनो पॉवर (Amino Power ) प्रोटीन का काफी अच्छा स्रोत है ,जिसमें की सभी प्रोटीन्स,विटामिन्स और मिनरल्स मिले हैं ।यह ४६ तत्वों का विश्वविख्यात टॉनिक देश -विदेशों में काफी ख्याति अर्जित कर चुका है।
भैंस के लिए वसा – पानी में न घुलने वाले चिकने पदार्थ जैसे घी, तेल इत्यादि वसा कहलाते हैं। कोशिकाओं की संरचना के लिए वसा एक आवश्यक तत्व है। यह त्वचा के नीचे या अन्य स्थानों पर जमा होकर, ऊर्जा के भंडार के रूप में काम आती है एवम् भोजन की कमी के दौरान उपयोग में आती है। पशु के आहार में लगभग 3-5 प्रतिशत वसा की आवश्यकता होती है जो उसे आसानी से चारे और दाने से प्राप्त हो जाती है। अत: इसे अलग से देने की आवश्यकता नहीं होती। वसा के मुख्य स्रोत – बिनौला, तिलहन, सोयाबीन व विभिन्न प्रकार की खलें हैं।
भैंस के लिए विटामिन – शरीर की सामान्य क्रियाशीलता के लिए पशु को विभिन्न विटामिनों की आवश्यकता होती है। ये विटामिन उसे आमतौर पर हरे चारे से पर्याप्त मात्राा में उपलब्ध हो जाते हैं। विटामिन ‘बी’ तो पशु के पेट में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा पर्याप्त मात्रा में संश्लेषित होता है। अन्य विटामिन जैसे ए, सी, डी, र्इ तथा के, पशुओं को चारे और दाने द्वारा मिल जाते हैं। विटामिन ए की कमी से भैंसो में गर्भपात, अंधापन, चमड़ी का सूखापन, भूख की कमी, गर्मी में न आना तथा गर्भ का न रूकना आदि समस्यायें हो जाती हैं। Growvit Power (ग्रोविट पॉवर) सबसे शक्तिशाली मल्टीविटामिन्स के रूप में जाना जाता है , जिसमें पशुओं के लिए जरुरी सभी विटामिन्स मिले हुए हैं।
भैंस के लिए खनिज लवण – खनिज लवण मुख्यत: हड्डियों तथा दांतों की रचना के मुख्य भाग हैं तथा दूध में भी काफी मात्राा में स्रावित होते हैं। ये शरीर के एन्जाइम और विटामिनों के निर्माण में काम आकर शरीर की कर्इ महत्वपूर्ण क्रियाओं को निष्पादित करते हैं। इनकी कमी से शरीर में कर्इ प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं। कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, सोडियम, क्लोरीन, गंधक, मैग्निशियम, मैंगनीज, लोहा, तांबा, जस्ता, कोबाल्ट, आयोडीन, सेलेनियम इत्यादि शरीर के लिए आवश्यक प्रमुख लवण हैं। दूध उत्पादन की अवस्था में भैंस को कैल्शियम तथा फास्फोरस की अधिक आवश्यकता होती है। प्रसूति काल में इसकी कमी से दुग्ध ज्वर हो जाता है तथा बाद की अवस्थाओं में दूध उत्पादन घट जाता है एवम् प्रजनन दर में भी कमी आती है। कैल्शियम की कमी के कारण गाभिन भैंसें फूल दिखाती हैं। क्योंकि चारे में उपस्थित खनिज लवण भैंस की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते, इसलिए खनिज लवणों को अलग से खिलाना आवश्यक हैै। इम्यून बुस्टर प्री-मिक्स( Immune Booster -Feed Premix ) पशुओं के लिए खनिज -लवण का सबसे अच्छा स्रोत है ,जिसे आप नियमित रूप से दे सकतें हैं
भैंस के लिए आहार की विशेषतायें :
- आहार संतुलित होना चाहिए। इसके लिए दाना मिश्रण में प्रोटीन तथा ऊर्जा के स्रोतों एवम् खनिज लवणों का समुचित समावेश होना चाहिए।
- यह सस्ता होना चाहिए।
- आहार स्वादिष्ट व पौष्टिक होना चाहिए। इसमें दुर्गंध नहीं आनी चाहिए।
- दाना मिश्रण में अधिक से अधिक प्रकार के दाने और खलों को मिलाना चाहिये। इससे दाना मिश्रण की गुणवत्ता तथा स्वाद दोनों में बढ़ोतरी होती है।
- आहार सुपाच्य होना चाहिए। कब्ज करने वाले या दस्त करने वाले चारे/को नहीं खिलाना चाहिए।
- भैंस को भरपेट चारा खिलाना चाहिए। भैसों का पेट काफी बड़ा होता है और पेट पूरा भरने पर ही उन्हें संतुष्टि मिलती है। पेट खाली रहने पर वह मिट्टी, चिथड़े व अन्य अखाद्य एवं गन्दी चीजें खाना शुरू कर देती है जिससे पेट भर कर वह संतुष्टि का अनुभव कर सकें।
- उम्र व दूध उत्पादन के हिसाब से प्रत्येक भैंस को अलग-अलग खिलाना चाहिए ताकि जरूरत के अनुसार उन्हें अपनी पूरी खुराक मिल सके।
- भैंस के आहार में हरे चारे की मात्राा अधिक होनी चाहिए।
- भैंस के आहार को अचानक नहीं बदलना चाहिए। यदि कोर्इ बदलाव करना पड़े तो पहले वाले आहार के साथ मिलाकर धीरे-धीरे आहार में बदलाव करें।
- भैंस को खिलाने का समय निश्चित रखें। इसमें बार-बार बदलाव न करें। आहार खिलाने का समय ऐसा रखें जिससे भैंस अधिक समय तक भूखी न रहे।
- दाना मिश्रण ठीक प्रकार से पिसा होना चाहिए। यदि साबुत दाने या उसके कण गोबर में दिखार्इ दें तो यह इस बात को इंगित करता है कि दाना मिश्रण ठीक प्रकार से पिसा नहीं है तथा यह बगैर पाचन क्रिया पूर्ण हुए बाहर निकल रहा है। परन्तु यह भी ध्यान रहे कि दाना मिश्रण बहुत बारीक भी न पिसा हो। खिलाने से पहले दाना मिश्रण को भिगोने से वह सुपाच्य तथा स्वादिष्ट हो जाता है।
- दाना मिश्रण को चारे के साथ अच्छी तरह मिलाकर खिलाने से कम गुणवत्ता व कम स्वाद वाले चारे की भी खपत बढ़ जाती है। इसके कारण चारे की बरबादी में भी कमी आती है। क्योंकि भैंस चुन-चुन कर खाने की आदत के कारण बहुत सारा चारा बरबाद करती है।
भैंसों के लिये आहार स्रोत :
भैसों के लिए उपलब्ध खाद्य सामग्री को हम दो भागों में बाँट सकते हैं – चारा और दाना ।
चारे में रेशेयुक्त तत्वों की मात्रा शुष्क भार के आधार पर 18 प्रतिशत से अधिक होती है तथा समस्त पचनीय तत्वों की मात्रा 60 प्रतिशत से कम होती है। इसके विपरीत दाने में रेशेयुक्त तत्वों की मात्रा 18 प्रतिशत से कम तथा समस्त पचनीय तत्वों की मात्रा 60 प्रतिशत से अधिक होती है।
भैंस के लिए चारा : नमी के आधार पर चारे को दो भागों में बांटा जा सकता है – सूखा चारा और हराचारा
भैंस के लिए सूखा चारा : चारे में नमी की मात्रा यदि 10-12 प्रतिशत से कम है तो यह सूखे चारे की श्रेणी में आता है। इसमें गेहूं का भूसा, धान का पुआल व ज्वार, बाजरा एवं मक्का की कड़वी आती है। इनकी गणना घटिया चारे के रूप में की जाती है।
भैंस के लिए हरा चारा : चारे में नमी की मात्रा यदि 60-80 प्रतिशत हो तो इसे हरा/रसीला चारा कहते हैं। पशुओं के लिये हरा चारा दो प्रकार का होता है दलहनी तथा बिना दाल वाला। दलहनी चारे में बरसीम, रिजका, ग्वार, लोबिया आदि आते हैं। दलहनी चारे में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। अत: ये अधिक पौष्टिक तथा उत्तम गुणवत्ता वाले होते हैं। बिना दाल वाले चारे में ज्वार, बाजरा, मक्का, जर्इ, अगोला तथा हरी घास आदि आते हैं। दलहनी चारे की अपेक्षा इनमें प्रोटीन की मात्राा कम होती है। अत: ये कम पौष्टिक होते हैं। इनकी गणना मध्यम चारे के रूप में की जाती है।
भैंस के लिए दाना : पशुओं के लिए उपलब्ध खाद्य पदार्थों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं – प्रोटीन युक्त और ऊर्जायुक्त खाद्य पदार्थ। प्रोटीन युक्त खाद्य पदाथोर् में तिलहन, दलहन व उनकी चूरी और सभी खलें, जैसे सरसों की खल, बिनौले की खल, मूँगफली की खल, सोयाबीन की खल, सूरजमुखी की खल आदि आते हैं। इनमें प्रोटीन की मात्रा 18 प्रतिशत से अधिक होती है।
ऊर्जायुक्त दाने में सभी प्रकार के अनाज, जैसे गेहूँ, ज्वार, बाजरा, मक्का, जर्इ, जौ तथा गेहूँ, मक्का व धान का चोकर, चावल की पॉलिस, चावल की किन्की, गुड़ तथा शीरा आदि आते हैं। इनमें प्रोटीन की मात्रा 18 प्रतिशत से कम होती है।
भैंस को आहार खिलाते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए की वह आहार किस उद्देश्य के लिए दिया जा रहा है तथा भैंस के शरीर में वह आहार कहाँ और कैसे उपयोग में आता है। इस आधार पर आहार/राशन को हम निम्नलिखित भागों में बाँट सकते हैं।
भैंस के जीवन की अवस्थायें और आहार की आवश्यकता
- जीवन निर्वाह के आहार
- बढ़वार आहार
- गर्भावस्था के आहार
- उत्पादकता के आहार
भैंश के जीवन निर्वाह के आहार – चारे तथा दाने की वह कम से कम मात्रा जो पशु की आवश्यक जीवन क्रियाओं के लिए जरूरी होती है जिससे पशु विशेष के वजन में न तो कमी आये न ही वृद्धि हो, जीवन निर्वाह आहार कहलाती है। जीवन निर्वाह आहार की मात्राा पशु के वजन पर निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में अधिक वजन वाले पशु को जीवन निर्वाह के लिए अधिक आहार की आवश्यकता पड़ती है। चारे के अतिरिक्त एक वयस्क भैंस को लगभग एक से दो किलोग्राम दाना मिश्रण चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) जीवन निर्वाह आहार के रूप में दिया जाता है।
भैंश के बढ़वार आहार – चारे व दाने की वह मात्रा जो छोटे बच्चों की शारीरिक वृद्धि कर उनका वजन बढ़ाने में खर्च होती है, बढ़वार राशन कहलाती है। इसे जीवन निर्वाह आहार के अतिरिक्त दिया जाता है। बढ़ते हुए कटड़े/कटड़ियों को उम्र के अनुसार आधा किलो से दो किलो तक दाना मिश्रण चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) चारे के अतिरिक्त खिलाया जाता है।
भैंश के गर्भावस्था के आहार – पशु के सात महीने से अधिक की गाभिन होने पर उसे जीवन निर्वाह के अतिरिक्त गर्भावस्था में बच्चे के विकास तथा स्वयं को प्रसूतिकाल और उसके बाद स्वस्थ रखने के लिए जिस अतिरिक्त राशन की आवश्यकता होती है उसे गर्भावस्था आहार कहते है। भैंस को चारे की गुणवत्ता और गर्भाधान के दिन के आधार पर आठवें महीने से 1 से 2 किलोग्राम दाना मिश्रण इम्यून बुस्टर प्री-मिक्स ( Immune Booster -Feed Premix ) अवश्य दिया जाता है।
भैंश के उत्पादकता के आहार – जीवन निर्वाह आहार के अतिरिक्त जो राशन दूध उत्पादन के लिए दिया जाता है, वह उत्पादकता आहार कहलाता है। उत्पादकता आहार की मात्रा भैंस द्वारा दिये जाने वाले दूध पर निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में अधिक दूध देने वाली भैंस को अधिक उत्पादकता आहार दिया जाता है। भैंस को प्रत्येक दो किलोग्राम दूध पर (6 से 7 कि0ग्रा0 प्रतिदिन दूध होने पर) एक किलोग्राम दाना मिश्रण चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) की आवश्यकता पड़ती है। यह भरपेट अच्छे चारे के अतिरिक्त होती है।
भैंश के जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में आहार की आवश्यकता इस प्रकार होती है।
इस तालिका से स्पष्ट है कि वे भैसें जो दूध नहीं देती, गाभिन नहीं है और बूढ़ी हो चली हैं, उन्हें केवल जीवन निर्वाह के लिए ही आहार की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत जिस कटड़ी ने पहली बार बच्चा दिया है तथा फिर गाभिन भी हो गर्इ है, उसे सबसे अधिक आहार की जरूरत पड़ती है। प्रजनन की सबसे अधिक समस्यायें इन्हीं भैंसों में देखने को मिलती हैं क्योंकि इन्हें जीवन निर्वाह व उत्पादकता आहार के अतिरिक्त शरीर की बढ़वार के लिए भी पोषण की आवश्यकता होती है। यदि ब्याने के बाद भैंस का वजन तेजी से घटता है तो यह इस बात का प्रतीक है कि उसे आवश्यकतानुसार आहार नहीं मिल पा रहा है। प्रारम्भ में भैंस अपने अन्दर भंडारित ऊर्र्जा स्रोत वसा को प्रयोग में लाती है। उसके समाप्त होने पर वह अपने अंदर के प्रोटीन को प्रयोग में लाती है। तब भी आवश्यकतानुसार राशन नहीं मिलने पर उसका उत्पादन व बढ़वार दोनों बुरी तरह प्रभावित होते हैं। यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि प्रजनन के लिए शरीर को ऊर्जा तभी मिलती है जब जीवन निर्वाह, बढ़वार और उत्पादन के लिये आवश्यक पोषण पशु को ठीक प्रकार से मिल रहे हों। किसी एक में भी कमी रहने पर सबसे पहले प्रजनन ही बाधित होता है। अत: यह कहा जा सकता है कि संतुलित आहार भैंस के स्वास्थ्य तथा उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता बनाये रखने के लिये आवश्यक है।
भैंश के संतुलित दाना मिश्रण कैसे बनायें:
पशुओं के दाना मिश्रण में काम आने वाले पदार्थों का नाम जान लेना ही काफी नही है। क्योंकि यह ज्ञान पशुओं का राशन परिकलन करने के लिए काफी नही है। एक पशुपालक को इस से प्राप्त होने वाले पाचक तत्वों जैसे कच्ची प्रोटीन, कुल पाचक तत्व और चयापचयी उर्जा का भी ज्ञान होना आवश्यक है। तभी भोज्य में पाये जाने वाले तत्वों के आधार पर संतुलित दाना मिश्रण बनाने में सहायता मिल सकेगी। नीचे लिखे गये किसी भी एक तरीके से यह दाना मिश्रण बनाया जा सकता है, परन्तु यह इस पर भी निर्भर करता है कि कौन सी चीज सस्ती व आसानी से उपलब्ध है।
कृपया ध्यान दें अगर आप इस दाना में या आप जो दाना देतें हैं ,उसमें इस लिंक पर उपलब्ध भैंस के लिए टॉनिक और दवाओं को मिला कर देतें हैं तो आपकी भैंस काफी लाभ देगी और शत – प्रतिशत परिणाम आयेंगें ।
1. मक्का/जौ/जर्इ 40 किलो मात्रा
बिनौले की खल 16 किलो
मूंगफली की खल 15 किलो
गेहूं की चोकर 25 किलो
मिनरल मिक्सर – चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) 02 किलो
साधारण नमक 01 किलो
कुल 100 किलो
2. जौ 30 किलो
सरसों की खल 25 किलो
बिनौले की खल 22 किलो
गेहूं की चोकर 20 किलो
मिनरल मिक्सर – चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) 02 किलो
साधारण नमक 01 किलो
कुल 100 किलो
3. मक्का या जौ 40 किलो मात्रा
मूंगफली की खल 20 किलो
दालों की चूरी 17 किलो
चावल की पालिश 20 किलो
मिनरल मिक्सर – चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) 02 किलो
साधारण नमक 01 किलो
कुल 100 किलो
4. गेहूं 32 किलो मात्रा
सरसों की खल 10 किलो
मूंगफली की खल 10 किलो
बिनौले की खल 10 किलो
दालों की चूरी 10 किलो
चौकर 25 किलो
मिनरल मिक्सर – चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) 02 किलो
नमक 01 किलो
कुल 100 किलो
5. गेहूं, जौ या बाजरा 20 किलो मात्रा
बिनौले की खल 27 किलो
दाने या चने की चूरी 15 किलो
बिनौला 15 किलो
आटे की चोकर 20 किलो
मिनरल मिक्सर – चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) 02 किलो
नमक 01 किलो
कुल 100 किलो
ऊपर दिया गया कोर्इ भी संतुलित आहार भूसे के साथ सानी करके भी खिलाया जा सकता है। इसके साथ कम से कम 4-5 किलो हरा चारा देना आवश्यक है।
चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) के गुण व लाभ :
• यह स्वादिष्ट व पौष्टिक है।
• ज्यादा पाचक है।
• अकेले खल, बिनौला या चने से यह सस्ता पड़ता हैं।
• पशुओं का स्वास्थ्य ठीक रखता है।
• बीमारी से बचने की क्षमता प्रदान करता हैं।
• दूध व घी में भी बढौतरी करता है।
• भैंस ब्यांत नहीं मारती।
• भैंस अधिक समय तक दूध देते हैं।
• कटडे या कटड़ियों को जल्द यौवन प्रदान करता है।
भैंश के संतुलित दाना मिश्रण मिक्सर – चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) कितना खिलायें :
1. शरीर की देखभाल के लिए:
गाय के लिए 1.5 किलो प्रतिदिन व भैंस के लिए 2 किलो प्रतिदिन
2. दुधारू पशुओं के लिए:
गाय प्रत्येक 2.5 लीटर दूध के पीछे 1 किलो दाना
भैंस प्रत्येक 2 लीटर दूध के पीछे 1 किलो दाना
3. गाभिन गाय या भैंस के लिए:
6 महीने से ऊपर की गाभिन गाय या भैंस को 1 से 1.5 किलो दाना प्रतिदिन फालतू देना चाहिए।
4. बछड़े या बछड़ियों के लिए:
1 किलो से 2.5 किलो तक दाना प्रतिदिन उनकी उम्र या वजन के अनुसार देना चाहिए।
5. बैलों के लिए:
खेतों में काम करने वाले भैंसों के लिए 2 से 2.5 किलो प्रतिदिन
बिना काम करने वाले बैलों के लिए 1 किलो प्रतिदिन। नोट : जब हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तो उपरलिखित कुल देय दाना 1/2 से 1 किलो तक घटाया जा सकता है। भैंस पालन से सम्बंधित कृप्या इस लेख को भी पढ़ें , भैंस पालन से सम्बंधित जानकारियां
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Powerful Chelated Minerals Mixture for Poultry,Cattle & Aqua Composition : Each 1 Kg. Contains: Vitamin A : 8,00,000 IU Vitamin D : 80,000 IU 3 Vitamin E : 600 mg Nicotinamide : 1200 mg Cobalt : 2200 mg Copper : 4700 mg Iodine : 600 mg Iron : 2200 mg Magnesium : 6500 mg Manganese : 3300 mg Potassium : 200 mg Sodium : 40 mg Sulphur : 0.95% Zinc : 10000 mg Calcium : 30% Phosphorus : 15% Indications & Benefits : Cattle:
Aqua:
Poultry :
Dosages: For Cattle: Large Animals : 50 gm daily Small Animals : 5-10 gm daily Mix 1 kg in 100 kg of feed For Aqua: Mix 10 kg in One Ton of feed For Poultry: Mix 1 kg in 100 kg of feed. Should be given daily for 7 to 10 days, every month or as recommended by veterinarian. Packaging : 1 Kg. & 5 Kg. | (Feed Premix) An Ultimate Immunity Builder for Poultry,Cattle & Aqua Composition : Each 10 gm contains: Vitamin – E : 35 mg Selenium : 10 ppm Glycine : 100 mg Amla : 30 mg Sodium Citrate : 25 mg Potassium Chloride : 5 mg Manganese Sulphate : 7.5 mg Zinc Sulphate : 8.0 mg Yeast Extract : 35 mg Vitamin B 12 : 3 mcg In a base fortified with immunoactive polysaccharides Indications & Benefits :
Dosage: For Cattle: Mix 1 kg in 100 kg of feed Large Animals : 50 gm daily Small Animals : 5-10 gm daily For Aqua: Mix 10 Kg in 1 Ton of feed For Poultry: Mix 1 kg in 100 kg of feed Should be given daily for 7 to 10 days, every month or as recommended by veterinarian. Packaging : 1 Kg. & 5 Kg. |