ब्रायलर मुर्गीपालन से सम्बंधित आधारभूत जानकारी

ब्रायलर मुर्गीपालन

ब्रायलर मुर्गीपालनब्रायलर मुर्गीपालन करने से से पहले यह जानना  जरूरी है की ब्रायलर मुर्गीपालन पालन क्या है और कैसे करें ? ब्रायलर मुर्गीपालन  का पालन मांस के लिए किया जाता है। ब्रायलर प्रजाति के मुर्गा या मुर्गी अंडे से निकलने के बाद ४० से ५० ग्राम के ग्राम के होते हैं जो सही प्रकार से दाना- दवा खिलाने और सही रख-रखाव के बाद के बाद ६ हफ्ते में लगभग १.५ किलो से २ किलो के हो जाते हैं।आज  ब्रायलर फार्मिंग एक सुविकसित व्यवसाय के रूप में उभर चूका है। ब्रायलर मुर्गीपालन कम समय में अधिक से अधिक पैसे कमाने का व्यवसाय है। इसे छोटे किसान भी छोटे गाँव में कर सकते हैं बस उन्हें सही गाइड की आवश्यकता है।

पुराने समय से ग्रामीण इलाकों में मुर्गीयों को पाला जाता रहा है। लेकिन आज के इस दौर में मुर्गीपालन एक बड़े व्यवसाय के रूप में उभर गया है जो किसानों की जीविकापार्जन का प्रमुख साधन बन गया है। मुर्गीपालन से  बेरोजगारी की समस्या पूरी तरह से दूर हो सकती है। ऐसे युवा मुर्गीपालन को रोजगार बना सकते हैं जो बेरोजगारी का जीवन जी रहे हैं। यदि आप ब्रायलर मुर्गीपालन को सही और उन्नत तरीके से कर सकते हैं तो यह कम खर्च में अधिक आय दे सकती है।  मुर्गी पालन में आपको कुछ तकनीकी बातों के बारे में पता होना चाहिए और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) का पालन करना बहुत ही जरुरी होती है । ये सारी जानकारियां ग्रोवेल एग्रोवेट प्राइवेट लिमिटेड के  वेबसाइट पर किताबोंलेख और वीडियो के माध्यम से उपलब्ध है ,आप उसे ध्यानपूर्वक देखें ,पढ़ें और पालन करें ।

कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां ब्रायलर मुर्गीपालन शुरू करने से पहले 

  • ब्रायलर फार्म खोलने से पहले आप किसी कृषि जानकार से सलाह जरूर लें या हमारे वेबसाइट ग्रोवेल एग्रोवेट प्राइवेट लिमिटेड के  वेबसाइट पर किताबोंलेख और वीडियो के जरिये विस्तृत जानकारी मुफ्त में उपलब्ध है ।आपको ब्रायलर या लेयर मुर्गीपालन करने हेतु जानकारी के लिए कहीं और जाने और भटकने की जरुरत नहीं है ।
  • ब्रायलर मुर्गीपालन करने के लिए पहले इसे छोटे स्तर के रूप शुरू करें। फिर बाद में बड़े फार्म में विकसित करें।
  • हमेशा उच्चतम गुणवत्ता वाले और अच्छी कंपनी की दवा और टीका का प्रयोग करें।
  • ब्रायलर मुर्गीपालन में बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) का पालन करें।
  • चूजे हमेंशा विश्वसनीय और प्रमाणित हेचरी से ही लें।

मुर्गीपालन दो प्रकार के होते हैं :

१. ब्रायलर मुर्गीपालन -मांस के लिए किया जाता है।

२. लेयर मुर्गी पालन -अंडे के लिए किया जाता है।

मुर्गी पालन के लिए कैसे जगह हो ?

  • जगह समतल हो और कुछ ऊंचाई पर हो, जिससे की बारिश का पानी फार्म में जमा ना हो सके और फर्श पक्का हो ।
  • मुख्य सड़क से ज्यादा दूर ना हो जिससे लोगों का और गाड़ी का आना जाना सही रूप से हो सके।
  • मुर्गियों के शेड और बर्तनों की साफ सफाई विराक्लीन(Viraclean) से हमेशा करते रहें।
  • चूज़े, ब्रायलर दाना, दवाईयाँ, वैक्सीन आदि आसानी से उपलब्ध हो।
  • मुर्गी पालन की जगह मेन रोड़ और शहर से बाहर होनी चाहिए।
  • बिजली और पानी की सुविधा सही रूप से उपलब्ध हो।
  • फार्म की लंबाई पूरब से पश्चिम की ओर होना चाहिए।
  • दो मुर्गी फार्म एक दूसरे के पास में नहीं होना चाहिए।
  • एक शेड में केवल एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए।
  • ब्रायलर मुर्गी और अंडे बेचने के लिए बाज़ार भी हो।
  • बिजली की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

फार्म के लिए शेड का निर्माण :

  • शेड हमेशा पूर्व-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और शेड के जाली वाला साइड उत्तर-दक्षिण में होना चाहिए जिससे की हवा सही रूप से शेड के अन्दर से बह सके और धुप अन्दर ज्यादा ना लगे।
  • शेड की चौड़ाई 30-35 फुट और लम्बाई ज़रुरत के अनुसार आप रख सकते हैं।
  • शेड का फर्श पक्का होना चाहिए।
  • शेड के दोनों ओर जाली वाले साइड में  दीवार फर्श से मात्र 6 इंच ऊँची होनी चाहिए।
  • शेड की साइड की ऊँचाई फर्श से 8-10 फूट होना चाहिए व बीचो-बीच की ऊँचाई फर्श से 14-15 फूट होना चाहिए।
  • शेड के अन्दर बिजली के बल्ब, मुर्गी दाना व पानी के बर्तन, पानी की टंकी की उचित व्यवस्था होना चाहिए।
  • एक शेड को दुसरे शेड से थोडा दूर- दूर बनायें। आप चाहें तो एक ही लम्बे शेड को बराबर भाग में दीवार बना करभी बाँट सकते हैं।

दाने और पानी के बर्तनों की जानकारी :

  • प्रत्येक 100 चूज़ों के लिए कम से कम 3 पानी और 3 दाने के बर्तन होना बहुत ही आवश्यक है।
  • दाने और पानी के बर्तन आप मैन्युअल या आटोमेटिक किसी भी प्रकार का इस्तेमाल कर सकते हैं। मैन्युअल बर्तन साफ़ करने में आसान होते हैं लेकिन पानी देने में थोडा कठिनाई होती है पर आटोमेटिक वाले बर्तनों में पाइप सिस्टम होता है जिससे टंकी का पानी सीधे पानी के बर्तन में भर जाता है।बर्तन साफ करने के बाद एक बार आप बर्तनों को विराक्लीन ( Viraclean ) से धो दें ,इससे बर्तन कीटाणुमुक्त हो जातें हैं ।

बुरादा या लिटर :

  • बुरादा या लिटर के लिए आपलकड़ी का पाउडर, मूंगफली का छिल्का या धान का छिल्का का उपयोग कर सकते हैं।
  • चूज़े आने से पहले लिटर की 3-4 इंच मोटी परत फर्श पर बिछाना आवश्यक है। लिटर पूरा नया होना चाहिए एवं उसमें किसी भी प्रकार का संक्रमण ना हो।बुरादा या लिटर को फार्म में हमेशा सूखा रखने की कोशिश करें और विराक्लीन ( Viraclean ) का छिड़काव करें ।

ब्रूडिंग :

  • चूज़ों के सही प्रकार से विकास के लिए ब्रूडिंग सबसे ज्यादा आवश्यक है। ब्रायलर फार्म का पूरा व्यापार पूरी तरीके से ब्रूडिंग के ऊपर निर्भर करता है। अगर ब्रूडिंग में गलती हुई तो आपके चूज़े 7-8 दिन में कमज़ोर हो कर मर जायेंगे या आपके सही दाना के इस्तेमाल करने पर भी उनका विकास सही तरीके से नहीं हो पायेगा।
  • जिस प्रकार मुर्गी अपने चूजों को कुछ-कुछ समय में अपने पंखों के निचे रख कर गर्मी देती है उसी प्रकार चूजों को फार्म में भी जरूरत के अनुसार तापमान देना पड़ता है।
  • ब्रूडिंग कई प्रकार से किया जाता है –  बिजली के बल्ब से, गैस ब्रूडर से या अंगीठी/सिगड़ी से।

 बिजली के बल्ब से ब्रूडिंग :

इस प्रकार के ब्रूडिंग के लिए आपको नियमित रूप से बिजली की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में प्रति चूज़े को 1 वाट की आवश्यकता होती है जबकि सर्दियों के महीने में प्रति चूज़े को 2 वाट की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में 4-5 दिन ब्रूडिंग किया जाता है और सर्दियों के महीने में ब्रूडिंग 12-15 दिन तक करना आवश्यक होता है। चूजों के पहले हफ्ते में ब्रूडर को लिटर से 6 इंच ऊपर रखें और दुसरे हफ्ते 10 से 12 इंच ऊपर।

गैस ब्रूडर से ब्रूडिंग :

जरूरत और क्षमता के अनुसार बाज़ार में गैस ब्रूडर उपलब्ध हैं जैसे की 1000 औ 2000 क्षमता वाले ब्रूडर। गैस ब्रूडर ब्रूडिंग का सबसे अच्छा तरिका है इससे शेड केा अन्दर का तापमान एक समान रहता है।

अंगीठी या सिगड़ी से ब्रूडिंग :

ये खासकर उन क्षेत्रों के लिए होता हैं जहाँ बिजली उपलब्ध ना हो या बिजली की बहुत ज्यादा कटौती वाले जगहों पर। लेकिन इसमें ध्यान रखना बहुत ज्यादा जरूरी होता है क्योंकि इससे शेड में धुआं भी भर सकता है या आग भी लग सकता है।

ब्रायलर मुर्गी दाना से जुडी जानकारी :

ब्रायलर फार्मिंग में 3 प्रकार के दाना की आवश्यकता होती है। यह दाना ब्रायलर चूजों के उम्र और वज़न के अनुसार दिया जाता है –

  • प्री स्टार्टर (0-10 दिन तक के चूजों के लिए)
  • स्टार्टर (11-20 दिन के ब्रायलर चूजों के लिए)
  • फिनिशर (21 दिन से मुर्गे के बिकने तक)
  • मुर्गी पालन में सबसे ज्यादा खर्च उनके दाने पर होता है।
  • दाने में प्रोटीन और इसकी गुणवत्ता का भी ध्यान रखना जरूरी है । मुर्गियों को उचित मात्रा में प्रोटीन ,मिनरल्स और विटामिन्स मिले इसके लिए मुर्गियों को नियमित रूप से Amino Power (अमीनो पॉवर) दें ,इससे ना केवल मुर्गों का वजन तेजी से बढ़ेगा बल्कि उनमें रोग प्रतिरोधी छमता बढ़ेगी और बीमारी का कम डर रहेगा ।
  • इसके अलावा आप चूजों को मक्का, सूरजमुखी, तिल, मूंगफली, जौ और गेूंह आदि को भी दे सकते हो।
  • दानें में हमेशा चिलेटेड ग्रोमिनफोर्ट (Chelated Growmin Forte) मिला कर दें यह दाने के गुणवक्ता को बढ़ देता है और दानें में मौजूद विटामिन्स और मिनरल्स की कमी को पूरा कर देता है

ब्रायलर मुर्गी के पीने का पानी :

ब्रायलर मुर्गा 1 किलो दाना खाने पर 2-3 लीटर पानी पीता है। गर्मियों में पानी का पीना दोगुना हो जाता है। जितने सप्ताह का चूजा उसमें 2 का गुणा करने पर जो मात्र आएगी, वह मात्र पानी की प्रति 100 चूजों पर खपत होगी, जैसे –

पहला सप्ताह = 1 X 2 = 2 लीटर पानी/100 चूजा
दूसरा सप्ताह = 2 X 2 = 4 लीटर पानी /100 चूजा

पिने के पानी में हमेशा एक्वाक्योर (Aquacure) मिला कर दें , यह पानी में मौजूद कीटाणुओं और बिसाणुओं को नष्ट कर पानी को स्वक्छ और शुद्ध कर देता है

ब्रायलर मुर्गीपालन के लिए जगह का हिसाब :

पहला सप्ताह – 1 वर्गफुट/3 चूज़े

दूसरा सप्ताह – 1 वर्गफुट/2 चूज़े

तीसरा सप्ताह से 1 किलो होने तक – 1 वर्गफुट/1 चूज़ा

1 से 1.5 किलोग्राम तक – 1.25 वर्गफुट/1 चूज़ा

1.5 किलोग्राम से बिकने तक 1.5 वर्गफुट/1 चूज़ा

सही प्रकार से चूजों को जगह मिलने पर चुज़ो को विकास अच्छा होता है और कई प्रकार की बिमारियों से भी उनका बचाव होता है।

ब्रायलर मुर्गीपालन के लिए लाइट या रोशनी का प्रबंध :

चूजों को 23 घंटे लाइट देना चाहिए और एक घंटे के लिए लाइट बंद करना चाहिए, ताकि चूज़े अंधेरा होने पर भी ना डरें। पहले 2 सप्ताह रोशनी में कमी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे चूज़े स्ट्रेस फ्री रहते हैं और दाना पानी अच्छे से खाते हैं। शेड के रौशनी को धीरे – धीरे कम करते जाना चाहिए।

मुर्गियों  में बीमारियां से बचाव और टीकाकरण :

मुर्गियों में कई तरह की बीमारियां पाई जाती हैं। जैसे पुलोराम, रानीखेत, हैजा, मैरेक्स, टाईफाइड और परजीविकृमी आदि रोग होते हैं। जिससे मुर्गीपालकों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बिमारियों से बचाव के लिए समय -समय पर मुर्गियों का टीकाकरण बहुत ही जरुरी है ,कुछ बीमारियां  की रोक-थाम  केवल टीकाकरण से ही संभव है। मुर्गियों में बिमारियों से बचाव के लिए बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियमों ) का पालन करना बहुत ही जरुरी और महत्वपूर्ण है।

बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) :

ग्रोवेल एग्रोवेट प्राइवेट लिमिटेड के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि योजनाबद्ध तरीके से ब्रायलर मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है। बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। वजह, कभी-कभी लापरवाही के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। इसलिए मुर्गीपालन में ब्रायलर फार्म का आकार और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मुर्गियां तभी मरती हैं जब उनके रखरखाव में लापरवाही बरती जाए।

ब्रायलर मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। जैविक सुरक्षा के नियम का भी पालन होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें। बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शेड में न घुसने दें। मरे हुए चूजे, वैक्सीन के खाली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें, समय-समय पर शेड के बाहर विराक्लीन  ( Viraclean ) का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें। पीने के पानी में एक्वाक्योर (Aquacure) का प्रयोग करें।

मुर्गा मंडी की गाड़ी को फार्म से दूर खड़ा करें। मुर्गी के शेड में प्रतिदिन 23 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। एक घंटे अंधेरा रखा जाता है। इसके पीछे मंशा यह कि बिजली कटने की स्थिति में मुर्गियां स्ट्रेस की शिकार न हों।

गर्मी में ब्रायलर मुर्गीपालन :

गर्मियों के समय में ब्रायलर मुर्गीपालन करने वाले लोगों को चाहिए कि वे मुर्गियों को तेज तापमान और अधिक गर्मी से बचाय जाए। मौसम में बदलाव की वजह से मुर्गियों की मौत तक हो सकती है। इस वह से मुर्गी पालन करने वालों को अधिक हानि हो सकती है। इसलिए  मुर्गियों की छत का गर्मी से बचाने के लिए छत पर घास व पुआल आदि को डाल सकते हैं। या छत पर सफेदी करवा सकते हैं। सफेद रंग की सफेदी से छत ठंडी रहती है। साथ ही आप मुर्गियों के डेरे पर पंखा आदि को भी लगा सकते हैं।

  • गर्मियों में चूजों के लिए पानी के बर्तनों की संख्या को बढ़ा दें। क्योकि गर्मियों में पानी न मिलने से हीट स्ट्रोक लगने से मुर्गियों की मौत हो जाती है।
  • जब तेज गर्मी होती है तब शेड की खिड़कियों पर टाट को गीला करके लटका दें। लेकिन इस बात का ध्यान जरूर रखें कि टाट खिड़कियों से न चिपके।
  • यदि मुर्गियों में गर्मी के लक्षण दिखाई दें तो आप उसे उठाकर पानी में एक डुबकी लगवा दें और उन्हें छाव में रखने के बाद शेड में रख लें। इस काम को बहुत तेजी से करें। नहीं तो मुर्गी मर भी सकती है।मुर्गीपालन से सम्बंधित कृपया आप इस लेख को भी पढ़ें गर्मी में मुर्गी पालन कैसे करें ?

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