ब्रॉयलर मुर्गीपालन व्यवसाय मांस के उत्पादन के लिए किया जाता है। ऐसा देखा गया है कि ब्रॉयलर मुर्गीपालन यानि की मांस के लिए मुर्गीपालन अंडे के लिए मुर्गीपालन से अधिक लाभकारी है । इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ब्रॉयलर मुर्गीपालन के लिए चूज़े ४० -४५ दिनों में तैयार हो जाते हैं जबकि अण्डा उत्पादन के लिए तैयार होने में मुर्गियों को साढ़े पांच महीने तक लग जाते हैं।ऐसे मुर्गे जिन्हें सिर्फ मांस प्राप्त करने के लिए पाला जाता है, उन्हें ब्रॉयलर मुर्गी कहते हैं। ये खास किस्म के मुर्गे होते हैं जिनकी शारीरिक बढ़त बहुत तेजी से होती है। ब्रॉयलर मुर्गीपालन व्यवसाय को छोटे स्तर से शुरू करके, अंशकालिक व्यवसाय के तौर पर भी अपनाया जा सकता है।मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जो आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है। बहुत कम लागत से शुरू होने वाला यह व्यवसाय लाखों-करोड़ों का मुनाफा दे सकता है। इसमें शैक्षणिक योग्यता और पूंजी से अधिक अनुभव और मेहनत की दरकार होती है। आज के समय में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में युवा मुर्गीपालन को रोजगार का माध्यम बना सकते हैं।
अगर आप चाहते हैं कि आपका मुर्गीपालन ब्यवसाय अच्छा चले और अधिक से अधिक मुनाफा हो तो आपको मुर्गियों का सही तरह से ख्याल रखना होगा। अच्छे और उच्च गुणवत्ता वाले पौष्टिक भोजन और उचित रख -रखाव ब्रॉयलर मुर्गीपालन के लिए जरूरी है। भारत में कई पोल्ट्री फीड उत्पादक कंपनियां उपलब्ध हैं। वे सभी प्रकार के मुर्गियों के लिए फ़ीड का उत्पादन करते हैं। आप अपने मुर्गियों के लिए उन भोजन का उपयोग आसानी से कर सकते हैं।
इस बात का भी ध्यान रखने की जरुरत है की विभिन्न प्रकार के मुर्गियों के रोगों के कारण हजारों किसान भारी नुकसान का सामना भी करते हैं। इसलिए, हमेशा अपने पक्षियों की अच्छी देखभाल करें और उन्हें पौष्टिक भोजन, स्वच्छ पानी प्रदान करें और उचित रख – रखाव करें । उनका समय पर टीकाकरण करें और कुछ सामान्य और आवश्यक दवाओं को नियमित रूप से देतें रहें ।
तो चलिए हम अब चर्चा करतें हैं कि कैसे शुरू करें एक सफल ब्रॉयलर मुर्गीपालन व्यवसाय :
ब्रॉयलर मुर्गीपालन के लिए सही चूजों का चुनाव:
ब्रॉयलर मुर्गीपालन में चूजों का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है।ब्रायलर फार्मिंग में चूजा का काफी अहम रोल है इस लिए चूजा हमेशा उच्चतम गुणवत्ता वाला ही लेना चाहिए । चुस्त, फुर्तीले, चमकदार आंखों वाले तथा समान आकार के चूजे उत्तम होते हैं। स्वस्थ चूजों की पिण्डली या पैर की खाल चमकदार होती है। चूजों को खरीदते समय ये ध्यान रखें कि पक्षियों के वजन में अन्तर न हो क्योंकि वजन में जितना अन्तर होगा आमदनी उतनी घटती चली जाती है। चूजे जब भी लें किसी अच्छे और उच्च गुणवत्ता वाले हैचरी से ही लें , आप अपने इलाके के प्रतिष्ठित हैचरी की जानकारी अपने इलाके के मुर्गीपालक भाइयों से ले सकतें हैं ।आप सस्ते चूजें लेने के चक्कर में न पड़ें बल्कि उच्च गुणवत्ता वाले ही चूजें लें ।
ब्रॉयलर मुर्गीपालन के लिए आवास की व्यवस्था:
ब्रॉयलर मुर्गीपालन के लिए मुख्य तौर पर दो प्रकार के घर तैयार किये जाते हैं।
१. पिंजरा सिस्टम- इसमें पक्षियों की ब्रूडिंग स्थिति (झुंड में रखने की अवस्था) में ०.२५ वर्ग फीट प्रति चूजा स्थान होना चाहिए और बढ़वार की स्थिति में आधा वर्ग फीट प्रति ब्रायलर चूजे के लिए स्थान होना चाहिए।
२. डीप लिटर सिस्टम- इसमें फर्श पर पालन किया जाता है। इसमें ब्रूडिंग स्थिति में प्रति ब्रायलर चूज़े का स्थान ०.५० वर्ग फीट होना चाहिए और बढ़वार की स्थिति में १.०० वर्ग फीट होना चाहिए।
चूजों का ब्रूडिंग : चूज़ों को ब्रूडर में रखने के बाद ये देखना चाहिए कि तापमान उनके लिए उपयुक्त है या नहीं क्योंकि तापमान की कमी और अधिकता से चूजों की बढ़वार पर बुरा प्रभाव पड़ता है। तापमान परिवर्तित होने पर चूज़े असहजता के कारण अजीब तरह की गतिविधियां करने लगते हैं। गर्मी ज्यादा होने पर बाड़े में कूलर की व्यवस्था ज़रूर कर दें। जब नए चूजों को बाड़े में रखा जाता है तो शुरुआति दो-तीन दिनों तक बाड़े में ३३ डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान बनाए रखें और इस अवस्था के बाद बाड़े का तापमान २१ डिग्री सेन्टीग्रेड बनाए रखना होता है।
मुर्गीपालन में बिछाली की देखभाल : नमी बढऩे पर चूज़ों का बिछावन गीला हो जाता है जिससे सांस सम्बंधी कई समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसलिए आद्र्रता ५० से ६० प्रतिशत से ज्यादा होने पर उनका बिछावन बदल देना चाहिए।मुर्गीपालन में बिछाली में आद्रता नहीं होनी चाहिए , बिछाली हमेशा सुखी होनी चाहिए ।बिछाली को हमेशा पलटते रहनी चाहिए और इसमें विराक्लीन (Viraclean) का छिड़काव नियमित रूप से करते रहनी चाहिए ताकि निस्संक्रामक रहे ।अगर बिछाली अच्छी क्वालिटी की नहीं होगी तो मुर्गियों में रोग संक्रमण का दर काफी अधिक होगा।
मुर्गियों के शेड में हवा का आवागमन: चूजों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए मुर्गियों के शेड में हवा का उचित आवागमन होना बहुत ही आवश्यक होता है।मुर्गियों का शेड हवादार होनी चाहिए ताकि मुर्गीघर का प्रदूषित हवा और दुर्गन्ध बाहर निकल सके और शुद्ध हवा अन्दर आ सके ।पक्षियों के मल- मूत्र से बिछाली भीग जाता है जिससे अमोनिया गैस उत्पन्न हो जाती है जिस कारण से पक्षियों की आंखों में खुजलाहट होती है , मुर्गियों विभिन्न तरह की बीमारी होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है और शारीरिक वृद्घि भी रुक सकती है इसलिए मुर्गियों के शेड में हवा के आवागमन का खास ध्यान रखना चाहिए।मुर्गी घर में एक – दो निकास पंखा (प्रदूषित हवा और दुर्गन्ध को मुर्गियों के शेड से बाहर करने के लिए ) भी होना चाहिए ताकि नियमित रूप से प्रदूषित हवा और गर्मी बाहर निकलते रहे ।
मुर्गियों के शेड में रोशनी की व्यवस्था: मुर्गियों के शेड में प्रकाश का प्रबंध आमतौर पर बल्ब से किया जाता है। २३ घंटे लगातार बाड़े में प्रकाश बनाए रखें और सिर्फ एक घंटा अंधेरा रखें, चाहे वह आवास खुले हों या बंद। शुरुआत के १ से १५ दिन तक २०० वर्ग फीट आकार के कमरे में ४० से ६० वॉट के बल्ब का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद १५ वॉट का बल्ब प्रकाश के लिए पर्याप्त होता है।
ब्रॉयलर मुर्गियों के पोषक आहार और ग्रोथ प्रमोटर टॉनिक :
ब्रॉयलर मुर्गी को शुरू से ही भर पेट पौस्टिक आहार खिलाएं जिससे की वे तेजी से बढ़ेंगे।मुर्गियों का दाना हमेशा अच्छी कंपनी का होनी चाहिए क्योंकि ब्रायलर जितना जल्दी तैयार होगा, मुर्गीपालकों के लिए उतना ही अधिक मुनाफा मिलेगा। इसलिए मुर्गियों का दाना हमेशा अच्छी गुणवत्ता वाली ही होनी चहिये । अच्छी गुणवत्ता वाली दाना होने से सबसे बड़ा फायदा यह है की मुर्गियां कम दाना खा कर अधिक से अधिक वजन देगी। ब्रायलर चूजे अंडे देने वाली मुर्गियों के चूजे की तुलना में काफी तेजी से बढ़ते हैं। अतः चूजों के वृद्घि की गति को ध्यान में रखते हुये , इनके लिए तीन प्रकार के आहार उपयोग में लाये जाते हैं।
प्री स्टार्टर आहार – यह दाना पहले दिन से १० दिनों तक ब्रायलर चूजों को दिया जाता है। यह दाना चूजों को देना जरूरी होता है क्योंकि इसमें उनके शरीर के लिए आवश्यक विटामिन्स होते हैं। दूसरी बात यह की ये दाने बहुत ही छोटे आकर में पिसे हुये होतें हैं,ताकि चूजे ये दाना अच्छे से खा सकें।अगर मुर्गीपालक प्री-स्टार्टर की जगह स्टार्टर का उपयोग करेंगे तो छोटे चूजे दाने अच्छे से नहीं खा पाएंगे जिसके कारण उनका विकास सही तरीके से नहीं हो पायेगा। अच्छे से दाना नहीं खाने के कारण ब्रायलर मुर्गियों को कई प्रकार की बीमारियाँ होने का भी खतरा है।अतः पहले दिन से दस दिनों तक के चूजों को प्री- स्टार्टर दाना ही दें ।
स्टार्टर आहार- यह दाना प्री-स्टार्टर के बाद दिया जाता है। यह दाना प्री-स्टार्टर से थोडा बड़े आकर का होता है और ११ से २० दिनों तक के ब्रायलर चूजों को दिया जाता है।११ से २० दिनों तक के ब्रायलर चूजों का वज़न लगभग ७०० से ८०० ग्राम तक हो जाता है अगर दाना अच्छी गुणवत्ता वाली हो।स्टार्टर आहार में करीब २३ प्रतिशत प्रोटीन और करीब ३००० कैलोरी उर्जा होती है। इससे मुर्गीयों का वजन और मांसपेशियों का विकास तेजी से होता है।
फिनिशर आहार- यह दाना मुर्गियों को २१ दिनों से लेकर बेचने तक दिया जाता है। यह दाना प्री-स्टार्टर और स्टार्टर से बड़ा होता है। इस समय तक मुर्गियों का वज़न ८०० ग्राम से ज्यादा हो जाता है इसलिए वो बड़े दाना को आसानी से खा सकते हैं।इसमें ऊर्जा की मात्रा में तो कोई परिवर्तन नहीं होता है लेकिन प्रोटीन की मात्रा घटा दी जाती है।
ब्रॉयलर ग्रोथ प्रमोटर और टॉनिक : मुर्गियों को तेजी से बढ़ने और बीमारी से बचाने के लिए उन्हें ब्रॉयलर ग्रोथ प्रमोटर और टॉनिक देना जरुरी है । लेकिन इस बात का ध्यान रखें की किसी भी कंपनी का ब्रॉयलर ग्रोथ प्रमोटर और टॉनिक देने से मुर्गियों का वजन नहीं बढ़ेगा और वो बीमारी से नहीं बचेंगें , हमेशा अच्छे कंपनी का ब्रॉयलर ग्रोथ प्रमोटर और टॉनिक दें ।आप मुर्गियों को ऐसा ही ब्रॉयलर ग्रोथ प्रमोटर और टॉनिक दें , जिनका त्वरित परिणाम आपको दिखाई ।आप इस लिंक पर जाकर गारंटीड परिणाम देने वाले ब्रॉयलर ग्रोथ प्रमोटर और टॉनिक के बारे में जानकारी पा सकतें हैं ।
ब्रॉयलर मुर्गियों का टीकाकरण : ब्रॉयलर मुर्गी का टीकाकारण कराना सबसे आवश्यक है क्योंकि इससे मुर्गी गंभीर बीमारियों से बचे रहते हैं।कुछ प्रमुख टीकाओं विवरण निचे दिया वर्णित है।
- मैरेक्स टीका: चूजों को सबसे पहले मैरेक्स का टीका लगवाना चाहिए जिससे उन्हें मैरेक्स बीमारी से सुरक्षा मिल सके। यह संक्रामक रोग चूजों को ही लगता है इसलिए चूज़ों को हैचरी से बाड़े में रखने पर यह टीका लगवाना बहुत ही जरुरी है। इस रोग का प्रकोप होने पर उनकी टांगे और गर्दन कमजोर हो जाती है।
- लसोटा: इसका टीका चूज़ों को ५ से ६ दिन पर लगवा देने से लासोटा वैक्सीन/रानीखेत बीमारी जैसे रोग नहीं होते हैं। इन रोगों से पक्षी को कुपोषण की दिक्कत हो जाती है और इनका वजन नहीं बढ़ता है।
- इन्फेक्शस ब्रूसल या गम्बोरो: इसका टीका १० से १२ दिन पर लगवाया जाता है। इस रोग में पक्षियों के शरीर में गाठे पड़ जाती है जिससे उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है।
- रानीखेत ( एफ स्ट्रेन का बस्टर डोज़ ) २५ से ३० दिन पर लगवाया जाता है।
ब्रॉयलर मुर्गीपालन में बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम):
पशुपालन बैज्ञानिकों का मानना है कि यदि योजनाबद्ध तरीके से मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है। बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है।वजह, कभी-कभी लापरवाही के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। इसलिए मुर्गीपालन में ब्रायलर फार्म का आकार और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षाके नियम) पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
पशुपालन बैज्ञानिकों के मुताबिक मुर्गियां तभी मरती हैं जब उनके रखरखाव में लापरवाही बरती जाए।मुर्गी फार्म में हमेशा साफ – सफाई का ध्यान रखें और कोई बाहरी संक्रमण ना हो । मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। मसलन ब्रायलर फार्म बनाते समय यह ध्यान दें कि यह गांव या शहर से बाहर मेन रोड से दूर हो, पानी व बिजली की पर्याप्त व्यवस्था हो।हमेशा बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) के नियमों का पालन करें।हमेशा पानी में वाटर सैनिटीजर Aquacure (एक्वाक्योर) मिलायें और फार्म में Viraclean (विराक्लीन) का छिड़काव करें।बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) के नियमों का पालन करने से आप काफी हद तक मुर्गियों को बिमारियों और महामारियों से बचा सकतें हैं।
ब्रॉयलर मुर्गीपालन को अधिक से अधिक लाभप्रद बनाने के लिए क्या करें ?
१. ब्रायलर ६ या ८ सप्ताह में निश्चित भार के हो जायें तो जल्दी से जल्दी बेच देना चाहिए क्योंकि उसके बाद वे दाना खाकर कम बढ़ते हैं।
२. हमेशा ग्रोवेल एग्रोवेट का ग्रोथ प्रमोटर ,लिवर टॉनिक,कैल्शियम,विटामिन,मिनरल्स और एंटीबायोटिक दें , केवल दवा ही न दें उसके रिज़ल्ट को परखें की दवा का प्रभाव है या नहीं ।ग्रोवेल एग्रोवेट की दवा और ग्रोथ प्रमोटर १०० % प्रभावकारी है और रिजल्ट ३ से ४ दिनों में दिखाई देने लगता है ।
३. आप मुर्गियों को दवा मुर्गियों की दवा चार्ट के अनुसार दें।इस लिंक पर आप मुर्गियों की दवा चार्ट पढ़ और डाउनलोड कर सकतें हैं।
ब्रॉयलर मुर्गीपालन से सम्बंधित कुछ खास बातें:
१.जितनी जल्दी हो सके चूजों को हैचरी से लाकर ब्रूडर में रखना चाहिए। अगर चूजे बाहर से मंगाते हैं तो यह सावधानी बरतनी चाहिए कि चूजे २४ घंटे के अन्दर ही ब्रूडर तक पहुंच जाएं।
२. जब तक चूजे दो से तीन घंटे तक पानी न पी लें तब तक दाने के बर्तनों को ब्रूडर में न रखें।
३. मरे हुए या अस्वस्थ चूजों को जितनी जल्दी हो सके हटा देना चाहिए।
४. मुर्गी फार्म में लोगों को आवागमन कम से कम हो।
५. मुर्गी फार्म को आबादी से दूर बांयें।
क्या कहतें हैं ,ब्रॉयलर मुर्गी पालन के बारे में पशुपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी :
ब्रॉयलर मुर्गीपालन से मुनाफे के बारे में जानकारी देते हुए पशुपालन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं की ”इसमें ज्य़ादा खर्च नहीं आता है, और कुछ ही दिनों में बिक्री भी शुरु हो जाती है। एक पक्षी लगभग ७० -८० रुपये में तैयार हो जाता है, और एक मुर्गे से एक किग्रा मांस मिलता है जो कि कम से कम १३०-१५० रुपए प्रति किलो बाज़ार में बिक ही जाता है।”
आज के दिन में ब्रायलर मुर्गीपालन एक आसान और कम पैसे में बहुत ही ज्यादा मुनाफा प्रदान करने वाला व्यापार बन चूका है, जिसे की बहुत ही छोटे स्तर से शुरू कर एक बृहत् उधोग का रूप दिया जा सकता है। ब्रायलर मुर्गीपालन का सबसे बड़ा फायदा यह है की आप इस व्यापार को कहीं भी भारत में शुरू कर सकते हैं।साथ ही ब्रायलर फार्मिंग के लिए चूज़े, दाना और दवा देश के सभी राज्यों में मिल जाते हैं। कई राज्यों में तो सरकार ब्रायलर फार्मिंग के लिए लोन भी देती है जिसमें लगभग ३०-५० % का सब्सिडी भी मिलता है, लोन के अलावा सरकार के द्वारा शिक्षण -प्रशिक्षण भी दिया जाता है। ब्रायलर मुर्गीपालन से देश भर में लाखों लोगों को फायदा हुआ है और रोजगार मिला है। इस बात में कोई शक नहीं है की ब्रायलर मुर्गीपालन एक बहुत ही लाभकारी ब्यवसाय है, वशर्ते की इसे उचित जानकारी, शिक्षण और प्रशिक्षण के साथ किया जाये।
कृपया आप इसे भी पढ़ें हिन्दी में पशुपालन और मुर्गीपालन पुस्तिका
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Indication & Benefits :
Dosage :
For 100 Birds:
Broilers: 10-15 ml.
Layers: 15-20 ml. Breeders: 15-20 ml. For Cattle: Packaging: 500 m.l. 1 ltr. & 5 ltr.
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Indication & Benefits :
Dosage:
For 100 Birds :
Growers and Broilers: 10-15 ml. daily.
Layers and Breeders: 15-20 ml. daily.
For Cattle:
Cow and Buffalo: 30-50 ml. daily.
Calf, Goat, Sheep & Pig: 20-30 ml daily.
Should be given daily for 7 to 10 days, every month or as recommended by a veterinarian
Packaging: 500 ml. & 1 ltr. |