मुर्गी शायद धरती पर सबसे बड़ी तादाद में पाया जाने वाला पक्षी है। कई अनुमानों के मुताबिक दुनिया भर में 13 अरब से भी ज़्यादा मुर्गियाँ पायी जाती हैं! और इसका गोश्त इतना मशहूर है कि हर साल 33 अरब किलोग्राम से भी ज़्यादा मुर्गी का गोश्त खाया जाता है। इसके अलावा, पूरे संसार में मुर्गियाँ हर साल करीब 600 अरब अंडे देती हैं।पश्चिमी देशों में मुर्गियाँ, बड़ी तादाद में मिलती हैं और सस्ती हैं। दशकों पहले अमरीका में राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान कुछ उम्मीदवार, मतदाताओं को यह वादा करके लुभाते थे कि अगर वे चुनाव जीत गए तो हर घर में मुर्गी पकेगी। ऐसा इसलिए था क्योंकि गुज़रे वक्त में मुर्गी को शाही खाना माना जाता था और सिर्फ रईस लोग ही इसे खाते थे, मगर आज ज़माना बदल गया है। यह बेजोड़ पक्षी इतना मशहूर कैसे हुआ और इतनी भरपूर मात्रा में कैसे मिल रहा है? और गरीब देशों के बारे में क्या? क्या इस भरपूर भोजन का वे भी कभी आनंद उठा पाएँगे?
मुर्गी की जानकारी
मुर्गी, एशिया के रेड जंगल फाऊल नामक पक्षी के वंशज है। इंसान, जल्द ही इस बात को जान गया कि इस पक्षी को आसानी से घर में पाला जा सकता है। करीब 2,000 साल पहले यीशु मसीह ने अपने दृष्टांत में मुर्गी का ज़िक्र करते हुए कहा कि वह किस तरह अपने बच्चों को पंखों तले इकट्ठा करके उनकी हिफाज़त करती है। इससे पता चलता है कि उस ज़माने के लोगों को भी मुर्गी के बारे में काफी जानकारी थी। लेकिन मुर्गी और उसके अंडों का बड़ी तादाद में उत्पादन करने का कारोबार 19वीं सदी में जाकर शुरू हुआ।
आज सबसे ज़्यादा मुर्गी का गोश्त खाया जाता है। करोड़ों घरों में, यहाँ तक कि शहर के लोग भी मुर्गियों को अपने घर के लिए या बेचने के लिए पालते हैं। मुर्गी की तरह ऐसे बहुत कम घरेलू पशु-पक्षी हैं जिन्हें अलग-अलग जगहों में तरह-तरह की परिस्थितियों में पाला जा सकता है। बहुत-से देशों में लोग मुर्गियों की ऐसी किस्में तैयार करते हैं जो उनके वातावरण में फलती-फूलती हैं और वहाँ के लोगों की ज़रूरतें पूरी करती हैं। उनमें ये मुर्गियाँ भी शामिल हैं: ऑस्ट्रेलिया की ऑस्ट्रालोर्प; जानी-पहचानी लेगहॉर्न जो असल में भूमध्य सागर के प्रांत की है, मगर अमरीका में काफी मशहूर है; न्यू हैम्पशायर, प्लाइमाउथ रॉक, रोड आइलैंड रॆड और व्यानडोटे, इन सबकी नस्लें भी अमरीका में पैदा की जाती हैं; और इंग्लैंड की कोर्निश, ओरपिंगटन और ससॆक्स।
फार्म में पालतू जानवरों को पालने के लिए नयी-नयी वैज्ञानिक तकनीकों की ईजाद की गयी है जिस वजह से मुर्गी पालना सबसे सफल कृषि व्यवसाय बन गया है। अमरीका के मुर्गी पालक, मुर्गियों के रख-रखाव और उन्हें दाना देने में बड़ी सावधानी बरतते हैं, साथ ही उन्हें बीमारियों से बचाव के लिए वैज्ञानिक तकनीकें अपनाते हैं। बहुत-से लोग, मुर्गियों को इस तरह के तकनीकी तरीकों से बड़ी मात्रा में पैदा करने की निंदा करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि ऐसा करना बेरहमी है। मगर इससे मुर्गी पालकों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है और वे मुर्गी पालने में कई बढ़िया-से-बढ़िया तरकीब ईजाद करते ही जा रहे हैं। आधुनिक तकनीकों की बदौलत काम इतना आसान हो गया है कि एक आदमी 25,000 से 50,000 मुर्गियों की देखभाल कर सकता है। और तीन महीने में इन पक्षियों का वज़न इतना हो जाता है कि ये बाज़ार में बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं।
मुर्गी का गोश्त
होटल हों, रेस्तराँ हों या ढाबा, लगभग हर खाने की जगह पर मेनू कार्ड में मुर्गी के व्यंजन ज़रूर दिए जाते हैं। दरअसल, दुनिया भर में ऐसे कई फास्ट-फूड रेस्तराँ हैं जो खासकर मुर्गी के गोश्त के लिए मशहूर है। आज भी कई समुदायों में लोग खास मौकों पर मुर्गी का गोश्त बनाना पसंद करते हैं। और भारत जैसे कुछ देशों में तो इसे बड़े ही लज़्ज़तदार तरीकों से पकाया जाता है। इनमें से कुछ व्यंजन हैं: लाल मिर्ची से तैयार, लाल मुर्गी; छोटे-छोटे टुकड़ों में पकी, कुर्गी मुर्गी; और थोड़े से तेल में अदरक के साथ तलकर पानी में पकायी, अदरक मुर्गी। इनको खाकर वाकई आप ऊँगलियाँ चाटते रह जाएँगे!
आखिर मुर्गी का गोश्त इतना मशहूर क्यों है? इसकी एक वजह यह है कि इसमें कई तरह के मसाले वगैरह मिलाकर बहुत लज़ीज़ बनाया जा सकता है। आप इसे किस तरह खाना पसंद करते हैं? तली हुई, सिकी हुई, उबली हुई, धीमी आँच पर थोड़े से तेल और पानी के साथ पकी हुई या स्टू बनाकर? आप कोई भी व्यंजन बनाने की किताब खोलिए उसमें आपको स्वादिष्ट मुर्गी बनाने के दर्जनों नुस्खे मिल जाएँगे।
कई देशों में मुर्गियाँ बड़ी तादाद में उपलब्ध हैं, इसलिए यह काफी सस्ती होती हैं। पौष्टिक आहार का बढ़ावा देनेवाले विशेषज्ञ भी इसे खाने की सलाह देते हैं, क्योंकि इसमें प्रोटीन, विटामिन और खनिज पाए जाते हैं जो इंसान के शरीर के लिए ज़रूरी हैं। और-तो-और, मुर्गी में कैलोरी, सैचूरेटॆड और दूसरे किस्म की वसा की मात्रा बहुत कम होती है।
गरीब देशों का पेट भरना
दुनिया के तमाम देशों में मुर्गी के गोश्त और अंडे बड़ी मात्रा में नहीं मिलते हैं। कृषि विज्ञान और टेक्नोलॉजी संघ के एक शोधकर्ता दल की रिपोर्ट के मुताबिक यह समस्या ध्यान देने लायक है। उस रिपोर्ट में यह कहा गया: “अनुमान है कि दुनिया की आबादी 2020 तक 7.7 अरब हो जाएगी . . . और उसमें से ज़्यादातर बढ़ोतरी (95 प्रतिशत) गरीब देशों में होगी।” इस बयान पर और भी गंभीरता से गौर करना ज़रूरी हो जाता है, जब आप ध्यान देते हैं कि करीब 80 करोड़ लोग पहले से ही कुपोषण से पीड़ित हैं!
फिर भी, बहुत-से विशेषज्ञों का मानना है कि मुर्गी, लोगों का पेट भरने के साथ-साथ मुर्गी पालकों की रोज़ी-रोटी जुटाने में भी एक खास भूमिका निभा सकती है। लेकिन गरीब मुर्गी पालकों के लिए बड़ी मात्रा में मुर्गियों को पालना मुश्किल हो सकता है। सबसे पहली वजह तो यह है कि गरीब देशों में मुर्गियाँ खासकर गाँव के छोटे-छोटे फार्मों में या घर के पिछवाड़ों में पाली जाती हैं। और ऐसे देशों में बहुत कम मुर्गियों को सुरक्षित माहौल में रखा जाता है। दिन में इन्हें यूँ ही यहाँ-वहाँ घूमने और दाना चुगने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है। वे बस रात में कभी-कभी पेड़ों पर या मुर्गी घरों में सोने के लिए लौटती हैं।
इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं कि इस तरह पाली गयीं बहुत-सी मुर्गियाँ न्यू कासल जैसी जानलेवा बीमारी के शिकार होकर मर जाती हैं और कुछ को दूसरे जानवर और इंसान खा लेते हैं। ज़्यादातर मुर्गी पालकों को न तो ये मालूम होता है कि मुर्गियों को क्या और कितना खिलाना चाहिए, उन्हें कैसे अच्छी तरह से रखना चाहिए या बीमारियों से उनका बचाव कैसा करना चाहिए। और न ही उनके पास यह सब इंतज़ाम करने के लिए पैसा होता है। इसलिए गरीब देशों में मुर्गी पालकों को इस बारे में शिक्षित करने के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने “अफ्रीका के गाँवों के गरीबों को फायदा पहुँचाने के लिए मुर्गी के उत्पादन को बढ़ाने” की पंचवर्षीय योजना शुरू की है।
नेक इरादे से शुरू की गयी इन योजनाओं का नतीजा क्या होगा, यह तो सिर्फ वक्त ही बता सकता है। इसलिए अमीर देशों में रहनेवालों के लिए यह सोचनेवाली बात है कि जहाँ वे रोज़ाना मुर्गी खाते हैं, वहीं दुनिया के ज़्यादातर लोगों के लिए मुर्गी खरीदना उनके बस के बाहर होता है। ऐसे हालात में, ये लोग ‘हर घर में मुर्गी पकने’ के बस ख्वाब ही देख सकते हैं
हालाँकि अमरीका में मुर्गियों को अंडे देने के लिए पाला जाता हैं, मगर 90 प्रतिशत मुर्गियाँ, गोश्त के लिए पाली जाती हैं।
मुर्गी का गोश्त काटते वक्त एहतियात बरतना
“मुर्गी के कच्चे माँस में साल्मोनेला जैसे खतरनाक जीवाणु हो सकते हैं। इसलिए इसे काटते और बनाते वक्त सावधानी बरतने की ज़रूरत है। हमेशा मुर्गी काटने से पहले और उसके बाद, अपने हाथों, चौपिंग बोर्ड, छुरी और कैंची को साबुन के गरम पानी में धोइए। यह अच्छा होगा अगर आप ऐसे चौपिंग बोर्ड का इस्तेमाल करें जिसे बहुत गरम पानी में भी धोया जा सकता है . . . और अगर हो सके तो यह बोर्ड गोश्त काटने के अलावा दूसरी खाने की चीज़ों को काटने के लिए इस्तेमाल मत कीजिए। बरफ में जमे गोश्त को पकाने से पहले उसे अच्छी तरह नरम होने दीजिए।” कृपया इस रोचक लेख को भी पढ़ें मुर्गीपालन लाभकारी क्यों और कैसे?
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